बर्बरता के विरुद्ध

आज के भारत में मुसलमान होने के मायने

October 9th, 2009  |  Published in प्रेस विज्ञप्ति/Press Release, साम्‍प्रदायिकता  |  7 Comments

सांप्रदायिकता के ख़ि‍लाफ़ कई वर्षों से संघर्षरत ‘अनहद’ ने 3-5 अक्‍टूबर को एक तीन दिवसीय सम्‍मेलन आयोजित किया था। इस सम्‍मेलन का विषय था ‘आज के भारत में मुसलमान होने के मायने’। इस सम्‍मेलन में दंगा, एनकाउंटर पीड़ि‍तों ने अपनी आपबीती सुनाई, और कई एक्टिविस्‍टों ने अपने अनुभव साझा करने के साथ ही अपने सुझाव भी दिए। इस सम्‍मेलन में यह बात निकल कर आई कि आतंकवाद विरोधी अभियान के नाम पर देशभर से कई दिल दहलाने वाली घटनाएं सामने आई हैं। बेकसूर मुसलमानों को गिरफ्तार किया जा रहा है। उनका उत्‍पीड़न कर उन्‍हें अपराध स्‍वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। कुछ लोगों को मुठभेड़ों में मार डाला गया और बाकी को मजिस्‍ट्रेटों के सामने पेश किया गया। मजिस्‍ट्रेटों ने उनके शरीर की चोटों पर ध्‍यान नहीं दिया। उन पर आतंक और देशद्रोह का आरोप लगाया गया। साथ यह, बात भी सामने आई कि  भारत में आज की तारीख में मुसलमान होने का मतलब दोयम दर्जे का नागरिक होना है। देश के मुसलमान डरे हुए है और पुलिस, प्रशासन, न्‍यायपालिका तथा राजनीतिक नेतृत्‍व और मीडिया सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों से ग्रस्‍त हैं।
तीन दिन के इस सम्‍मेलन का पहला सत्र आतंकवाद विरोधी अभियान के शिकार बने बेगुनाह मुसलमानों की शिकायतों पर आधारित था। इसमें हैदराबाद के मक्‍का मस्जिद कांड के आरोपियों के वकील शफ़ीक महाज़ि‍र ने कहा कि केवल मुसलमान ही आतंकवादी होते होते हैं यह धारणा सही नहीं है। 
पत्रकार अबू जफ़र ने कहा कि पुलिस हिरासत में जाने के बाद लोगों को यह भूल जाना चाहिए कि वे लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। उन्‍होंने कहा कि दो दिन लॉकप में रहने के बाद उन्‍हें अहसास हुआ कि यह देश सेक्‍युलर नहीं कम्‍युनल है। यहां इंसाफ मरता जा रहा है। अहमदाबाद के वकील दानिश कुरैशी ने इस मौके पर कहा कि गुजरात का मुस्लिम डरा हुआ है। हर चुनाव से पहले ऐसी स्थिति बनायी जाती है कि राज्‍य में आतंकवाद सिर उठा रहा है ताकि उसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके। पुलिस जांच की स्थिति ऐसी है कि अब तक अहमदाबाद बम कांड में पांच लोगों को मास्‍टरमाइंड बताया जा चुका है और 80 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।
मुसलमानों की स्थिति का जायजा लेने और उनके समाधान के लिए मांगपत्रक तैयार करने के लिए सम्‍मेलन में एक ज्‍यूरी बनायी गयी थी। इस ज्‍यूरी ने सांप्रदायिक भेदभाव को पहचानने और उनके लिए कड़ी सजा देने के  लिए एससी-एसटी कानून की तरह एक कानून बनाने की मांग की है। इस ज्‍यूरी में असगर अली इंजीनियर, एडमिरल रामदास, हर्ष मंदर, तरुण तेजपाल, महेश भट्ट, प्रशांत भूषण, राम पुनियानी, जफ़र आगा आदि शामिल थे।

7 Responses

Feed Trackback Address
  1. shadab says:

    kahan hain insaniyat ke alambardar,aap unse insaaf maang rahe hain jo bihari-marathi ko lekar jhagar rahe hai.jinko apne bhai se hi pyar nahi wo aapki baat kyon sunege,agar aap awaz uthaoge to 'ATANKWADI' kehlaoge,kabhi kisi ne poocha ke military ke secret bechnewake,swiss banks main paise jama karne wale, sena ke tabbot main commission khane wale… misale bahut hain bus chup hi rahne dijiye..

  2. जाने कैसे मैं
    "आज के भारत में मुसलमान होने के फायदे" पढ़ गया। उसके बाद सैकड़ो उदाहरण दिमाग में आए जिन्हें आप सुनना पसंद नहीं करेंगे।
    क्या फायदा कहने से ?

  3. आप की बात कुछ हद तक तो सही है लेकिन ऐसा सिर्फ मुसलमानों के साथ ही होता है ऐसी बात नही है….यह अन्य के साथ भी होता रहा है…और शायद यह जानबूझ कर ना किया जाता हो..

  4. इस धर्म ने हमको सिवाय मानसिक द्वेष और सामप्रदायिक ईर्ष्या के कुछ नहीं दिया। अगर इंसान किसी धर्म से जुडा ना होकर केवल इंसान होता तो शायद से सामप्रदायिकता नहीं होती। हाँ मैं मानता हूँ कि होता है मुसलमानों के साथ बहुत ग़लत व्यवहार। और ये सारी मानवता के लिये बहुत शर्म की बात है।

  5. एक अच्छी रपट…
    कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती हुई…

  6. Rahul Kumar says:

    "आज के भारत में मुसलमान होने के मायने" पढ़ा..

    समस्यायें तो वाज़िब हैं, पर क्या इन्से निज़ात पाने क कोई उपय जान पड़ता है? मुझे तो कोइ रास्ता नहीम दिखता.. संदीप जी, मदद करें..

  7. ali says:

    भारत ही क्यों पूरी दुनिया में मुसलमान होने के मायने कब तक खोजेंगे ये लोग ?

    मजलूम होने का रोना आखिर कब तक ?

    अरे भाई फासीवादी / फिरकापरस्त ताकतों को पहचान / भुगत चुके हो ?
    तो फिर इन ताकतों के विरुद्ध खड़े 'मित्रों' के साथ लामबंद क्यों नहीं हो जाते ?

Your Responses

two × five =


हाल ही में


हाल ही में