बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की छठी बरसी पर रिहाई मंच ने लखनऊ में किया सम्मेलन
पांच सूत्रीय प्रस्ताव हुआ पारित, बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग

लखनऊ, 19 सितंबर 2014। बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर की छठवी बरसी पर समूचे प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग को लेकर रिहाई मंच द्वारा ’सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति और खुफिया एजेंसियों की भूमिका’ विषय पर एक सम्मेलन का आयोजन यूपी प्रेस क्लब में शुक्रवार को किया गया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता के बतौर प्रख्यात पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने उपस्थित जन समुदाय को संबोधित किया। गौतम नवलखा ने कहा कि इस मुल्क में फर्जी एनकाउंटरों का सिलसिता बाटला हाउस से शुरू नहीं होता है। यह अमरीका में हुई 29 सितंबर 2001 की घटना के बाद भी भारत में नही शुरू होता। इसका एक पुराना इतिहास रहा है और हर राज्य में यह हुआ है। आपातकाल के दौर में सबसे ज्यादा फर्जी एनकाउंटर आंध्र प्रदेश में हुए हैं। गौतम नवलखा ने कहा कि उत्तर प्रदेश उप चुनाव में भाजपा का हिन्दुत्व और उसकी ध्रुवीकरण की राजनीति को एक धक्का भले लगा है, लेकिन उनकी विषैली और विभाजनकारी राजनीति अभी खत्म होने वाली नहं है। संघ, विश्व हिंदू परिषद आज भी अपनी उसी राजनीति पर कायम हैं। कई राज्यों मे उनकी सरकारें हैं। आज उनके लिए प्रशासन ’साफ्ट’ हो गया है, उनकी मदद कर रहा है। पिछली एनडीए सरकार का तैयार किया हुआ पुलिस तंत्र इस भाजपा सरकार में उनकी मुट्ठी में है। उन्होंने कहा कि पहले इस पूरे तंत्र को हमें समझना होगा। भारत में आतंकवाद की लड़ाई सन् 1980 में ही ’खालिस्तान’ के खात्मे के नाम पर शुरू हो चुकी थी। इस दौर में इंदिरा गांधी ने झूठ की राजनीति का सहारा लिया था और बेगुनाह नौजवानों पर जुल्म करवाए थे। उस दौरान कई युवकों पर फर्जी मुकदमे दर्ज हुए, और कई फर्जी एनकाउंटर हुए थे लेकिन कुछ नहीं हुआ। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पुलिस और प्रशासन के लोगों ने सांप्रदायिक तरीके से एक समुदाय विशेष के आम लोगों का फर्जी एनकाउंटर किया था। गौतम नवलखा ने कहा कि हिन्दुस्तान के कानूनों में पिछले तीस सालों में बड़े बदलाव आए। इस दौर में पुलिस और खुफिया एजेंसियों को बड़े व्यापक अधिकार दिए गए हैं। अपनी ज्यादतियों और सांप्रदायिक कार्रवाइयों के बाबत जब भी वे अदालत में खींचे गए, उनके मनोबल गिरने की दुहाई दी गई। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी कालांतर में इस ’मनोबल’ पर मुहर लगाई गई। सुरक्षा बलों पर मुकदमा तब तक नहीं चलाया जा सकता जब कि सरकार उन्हें ऐसा करने की अनुमति न दे। आखिर यह ’मनोबल’ क्या है? बाटला हाउस फर्जी एनकाउंटर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मारे गरे पुलिस अधिकारी मोहन चन्द्र शर्मा बिना बुलेटप्रूफ जैकेट पहने वहां कैसे पहुंच गए? यह एक बड़ा सवाल है। यह पुरस्कार की लालसा आपस में ही पुलिस के साथियों की हत्या करने को खूब उकसाती है। कश्मीर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज पुरस्कारों की होड़ में पुलिस और खुफिया विभाग के लोग कश्मीर में फर्जी हत्याएं बेधड़क कर रहे हैं। कश्मीर में फर्जी एनकाउंटर इसी के चलते बड़ी संख्या में होते हैं और बेगुनाहों के खून से खेला जाता है। गौतम नवलखा ने कहा कि आज खुफिया एजेंसियों की पूरी कार्य प्रणाली ही सवालों के घेरे में है। आज आईबी की कोई ’जवाबदेही’ ही नहीं है। सबसे पहले आईबी को संसद के प्रति जवाबदेह बनाना होगा। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के साथ ही ’मुस्लिम आतंकवाद’ का शब्द ग़ढ़ा गया और यह वैसी ही बात हुई जहां पीडि़त को ही गुनहगार बना दिया जाए। उन्होंने यूएपीए के बारे में बोलते हुए बताया कि आतंक से लड़ने के नाम पर बनाए गए कानून ही विभेदकारी हैं और उनका खात्मा करना सबसे बड़ी फौरी जरूरत है। मुसलमानों के मामले में हम साफ अंतर पाते हैं। यह संविधान की समता की भावना के खिलाफ है। गौतम नवलखा ने आगे कहा कि आज सुरक्षा बल और खुफिया एजेंसियां सरकार पर हाबी हैं और ’अफ्स्पा’ जैसा कानून हटाने की हिम्मत भी सरकार नहीं कर सकी है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट, कर्नाटक में खुफिया तंत्र का लंबा आतंक रहा है वे सरकारों के कानून और पाॅलिसी को प्रभावित करती रही हैं। उन्होंने अदालतों के रवैए पर निराशा जताते हुए कहा कि अब अदालतें भी सांप्रदायिक हो गई हैं, इसलिए इंसाफ के सवाल का ही खात्मा हो चुका है। इस स्थिति ने आईबी और पुलिस को निरंकुश कर दिया है। सिमी पर बैन लगाने के बाद जो कारवाइयां की गईं वे इसकी तस्दीक करती हैं। जब सिमी के सदस्यों ने सरकार के बैन को ट्रिब्यूनल में चुनौती दी वे सब युएपीए की गिरफ्त में आ गए जिससे उन्हंे दस साल की सजा हो सकती थी। कानून ने अपने दरवाजे लोगों को न्याय दिलाने के लिए बंद कर रखे हैं। संघ के लोग इस कानून की श्रेणी में नहीं आते। राज्य ने उन पर कोई कार्रवाही न कर के उन्हंे खुला संदेश दे दिया है कि वे कुछ भी कर सकते हैं। गौतल नवलखा ने कहा कि एजेंसियों पर राजनैतिक दबाव होता है जो इस समस्या को और विकराल बना देता है। आज विभाजनकारी राजनीति ही भाजपा की कथित विकास की राजनीति का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि बड़े आर्थिक बदलावों से उपजने वाले विरोधों से ध्यान हटाने के लिए भी आतंकवाद का इस्तेमाल होता है। उत्तर प्रदेश के राजनैतिक हालातों का जिक्र करते हुए उन्होंने साफ कहा कि प्रदेश में चाहे जो चुनाव जीते, वीएचपी के लोगों को, अपने काम करने के तरीकों में कोई फर्क नही पड़ता। सपा सरकार उनकी खुली मदद कर रही है। उन्होंने कहा कि आज इस देश के मुसलमानों के लिए भयावह वक्त है। भाजपा केवल मुसलमानों के लिए हानिकारक नहीं है। यह पूरे समाज के लिए हानिकारक हैै। उन्होंने कहा कि हमें जोड़ने वाली चीजों की तरफ देखने की जरूरत हैं। जो कानून लोगों के बीच में विभेद करता हो उनका विरोध करना ही होगा। अगर कानून सबको बराबरी का दर्जा देता है तो फिर विभेदकारी यूएपीए कानून की जरूरत क्या है। यूएपीए जैसा कानून किसी अन्य मुल्क में नही है। इन काले कानूनों के खिलाफ सड़क पर उतरना होगा। पूर्व आपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी ने कहा कि राज्य तंत्र का जो पूरा ढ़ांचा है वही विभेदकारी है। उसमें दलितों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों की कोई भागीदारी नहीं है जो फासीवादी राजनीति की मददगार है। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि आज देश की एकता को बचाने के लिए जरूरी है कि हाशिए की आवाज उठाने वाले सभी लोग एक मंच पर आएं। फासीवाद के निशाने पर सिर्फ मुसलमान ही नहीं हैं आदिवासी, महिलाएं और दलित भी हैं। इनके बीच एकता तोड़ने के लिए फासीवाद साम्प्रदायिकता का इस्तेमाल कर रहा है। रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन मसीहुद्दीन संजरी ने किया। सम्मेलन के अंत में पांच सूत्रीय प्रस्ताव पारित करते हुए मांग की गई - 1- बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की न्यायिक जांच कराई जाए। 2- खुफिया एजेंसियों को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया जाए। 3-बेगुनाह नौजवानों को आतंकवाद के फर्जी मामलों में फंसाने वाले पुलिस व खुफिया अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। 4- आतंकवाद के आरोप में बेगुनाह साबित हुए लोगों के लिए पुर्नवास और मुआवजा नीति घोषित की जाए। 5- सभी आतंकी घटनाओं की न्यायिक जांच कराई जाए।

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