बर्बरता के विरुद्ध

प्रो. सभ्‍भरवाल की हत्‍या पर हत्‍यारों का क्रूर अट्टहास और विष्‍णु नागर की कविता

July 16th, 2009  |  Published in कला-साहित्‍य/Art-Literature  |  2 Comments

हत्‍यारे जश्‍न मना रहे हैं। इंसाफ उनकी जेब में जो है। कॉलेज में सैकड़ों लोगों के सामने प्रो. सभ्‍भरवाल को मारने वाले एबीवीपी के प्रदेश अध्‍यक्ष और सचिव सबूतों के अभाव में अदालत से बरी हो गये। जज ने माना कि इंसाफ नहीं हो पाया। इंसाफ हो भी कैसे सकता है जज महोदय, इस व्‍यवस्‍था में खूनी हत्‍यारे भी लोकतंत्र की आड़ में सत्ता तक पहुंचने के लिए आजाद हैं। इस मामले में वहां की भाजपा सरकार और उसकी गुण्‍डा परिषद ने सिर्फ प्रो. सभ्‍भरवाल को ही नहीं मारा बल्कि यह भी दिखाया कि फासीवादी ताकतें अदालतों और कानूनों का किस तरह मजाक उड़ा देती हैं। बहरहाल, आदरणीय कवि श्री विष्‍णु नागर की प्रस्‍तुत कविता इस बात को एकदम उघाड़ कर सपाट ढंग से बयान कर रही है…

हत्‍यारों का आदेश
हत्‍यारों का आदेश है
हमें न सिखाये कोई मानवता
हम हैं ही मानवीय
हम पहले मारते हैं
गोली आदमी की जांघों में
वह फिर भी दौड़ता है
तो उसकी पसलियों में
फिर भी नहीं मानता
तो मारते हैं
उसके कपाल पर

जलाने के लिए लकड़ी,
घी वगैरह अरथी के लिए चार आदमी
हमीं जुटाते हैं
हम खुद भी दो मिनट का मौन रखने
तफरीहन चले आते हैं

2 Responses

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  1. गुजरात के दंगे हों, या 84 में सिखों का कत्‍लेआम, हत्‍यारे आज भी खुलेआम घूम रहे हैं। सत्तासुख भोग रहे हैं। हम ऐसे ही समय के गवाह हैं, जब सभ्‍भरवालों को मार दिया जाता है और हत्‍यारे…सीना चौड़ा करके घूमते हैं।

  2. जब हत्यारों को व्यवस्था सजा नहीं दे पाती तो जनता उन से निबटती है।

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हाल ही में


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