बर्बरता के विरुद्ध

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इजरायल द्वारा फिलस्तीनी जनता के बर्बर नरसंहार के खिलाफ देशभर में विरोध-प्रदर्शन

July 18th, 2014 by Smash Fascism | No Comments

13 जुलाई को ‘इंडियन पीपुल इन सॉलिडैरिटी विद गाजा’ के आह्वान पर सुबह 11 बजे दिल्‍ली स्थित इजरायली दूतावास के सामने सैकड़ों लोगों ने जियनवाद-साम्राज्‍यवाद विरोधी, इस्रायल विरोधी व फिलस्‍तीनी जनता के समर्थन में नारे लगाए गए, इजरायल द्वारा नरसंहार का विरोध किया और वहां मौजूद लोगों ने अपनी बात रखी।


गाजा : वे फिर उठेंगे किसी नए प्रगतिकामी संगठन के झंडे तले…

July 11th, 2014 by Smash Fascism | 1 Comment

सुना है कि जब रोम जल रहा था उस समय नीरो बाँसुरी बजा रहा था. अब इसमें अजीब क्या है? हमारे तमाम महापुरुषों का कहना है कि ‘कला कला के लिये’ होती है और उसे दीन-दुनिया से कुछ लेना-देना नहीं होता. कला के प्रति इतना गहरा समर्पण कम ही देखने को मिलता है. पर आज के नीरो आधुनिक हैं. वे बाँसुरी नहीं बजाते. जब फिलिस्तीनी नागरिक महिलायें और मासूम बच्चे इसरायली बमबारी में मारे जा रहे होते हैं उया वक़्त वे फुटबाल के या क्रिकेट के मैच देखते हैं. खेल भी तो भाईचारे की भावना को बढ़ाते हैं. आधुनिक नीरो बमबारी का जवाब भाईचारे से दे रहे हैं – मगर अपने तरीके से.


Can Modi be compared to Hitler?

June 12th, 2014 by Smash Fascism | No Comments

When a German delegation visited Gujarat (April 2010), one of the members of the delegation pointed out that he was shocked by parallels between Germany under Hitler and Gujarat under Modi. Incidentally in Gujarat school books Hitler has been glorified as a great nationalist. ( http://deshgujarat.com/2010/04/10/german-mps-mind-your-own-business/). The similarities with Hitler don’t end here. Like Hitler, Modi enjoys the solid support from the corporate World.


क्या वाकई आप मुसलमानों को जानते हैं?

June 9th, 2014 by Smash Fascism | 5 Comments

मिथक 8: हिंदू जम्मू-कश्मीर में भूमि नहीं खरीद सकते हैं।

कोई भी ग़ैर कश्मीरी, जम्मू कश्मीर में ज़मीन नहीं खरीद सकता, जैसे कि कोई ग़ैर हिमाचली, हिमाचल प्रदेश में ज़मीन नहीं खरीद सकता है, नागालैंड में बाहरी लोग बिना इजाज़त प्रवेश नहीं कर सकते हैं, ग़ैर उत्तराखंडी, उत्तराखंड में सिर्फ छोटे निवास भूखंड ही खरीद सकते हैं, यही नहीं देश के कई इलाकों में स्थानीय आबादी के हितों की रक्षा के लिए इस तरह के क़ानून लागू हैं। इस मुद्दे का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।


फ़ासीवाद की वैचारिकी, चरित्र, उद्भव और विकास की आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि और इतिहास को समझने के लिए कुछ जरूरी सामग्री

June 5th, 2014 by Smash Fascism | No Comments

(नोट: इन पुस्तकों/लेखों/रिपोर्टों की सभी स्थापनाओं से हमारी-आपकी सहमति न ज़रूरी है, न सम्भव। अलग-अलग स्कूल के मार्क्‍सवादियों की स्थापनाओं में भी अन्तरविरोध हैं। पर इन सभी से आज के नवउदारवादी दौर में, पूरी दुनिया में और भारत में फ़ासीवादी शक्तियों के विविधरूपा नये उभार को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नुक्ते और कुछ अन्तर्दृष्टियां मिलती हैं।)


नरेन्द्र दाभोलकर को किसने मारा

June 5th, 2014 by Smash Fascism | No Comments

राम पुनियानी

डाक्टर नरेन्द्र दाभोलकर की क्रूर हत्या (20 अगस्त 2013), अंधश्रद्धा व अंधविश्वास के खिलाफ सामाजिक आंदोलन के लिए एक बड़ा आघात है। पिछले कुछ दशकों में तार्किकता और सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने का काम मुख्यतः जनविज्ञान कार्यक्रम कर रहे हैं।  महाराष्ट्र में इसी आन्दोलन से प्रेरित हो ’‘अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’’ का गठन किया गया,जिसने डाक्टर नरेन्द्र दाभोलकर के नेतृत्व में जनजागरण का प्रभावी अभियान चलाया।


हिंदू राष्ट्रवाद की विदेशी जड़ें – 2

January 30th, 2012 by Smash Fascism | No Comments

फ़ासीवाद और मुसोलिनी में भारतीय हिंदू राष्‍ट्रवादियों की रुचि एक आकस्मिक जिज्ञासा मात्र से पैदा नहीं हुई थी जो कुछ व्‍यक्तियों तक ही सीमित हो, बल्कि इसे उस मनोयोग की पराकाष्‍ठा का परिणाम समझना चाहिए, जिसे हिंदू राष्‍ट्रवादियों ने, विशेषकर महाराष्‍ट्र के हिंदू राष्‍ट्रवादियों ने इतालवी तानाशाही और इसके नेता पर केंद्रित किया था। उन्‍हें फ़ासीवाद में रूढ़ि‍वादी क्रांति नज़र आई। इतालवी सरकार के पहले चरण से ही यह अवधारणा मराठी अख़बारों में विस्‍तृत चर्चा का विषय रही।


कहानी – सुबह का रंग भूरा – फ्रांक पावलोफ़

October 28th, 2010 by Smash Fascism | 2 Comments

एक सर्वसत्तावादी समाज किस तरह से सोच-विचार के तरीकों से लेकर रहन-सहन और जीवनशैलियों की स्वाभाविकता में ख़लल और आख़िरकार डकैती डाल कर गिरवी बना लेता है, ‘माटिन ब्रून’ मनुष्य जीवन में ऐसी राजनैतिक सामाजिक सांस्कृतिक दुर्घटनाओं, विपदाओं की सूचना का दस्तावेज़ है। स्वेच्छाचारी, निरकुंश और फ़ासिस्ट चरित्र वाला ब्राउन स्टेट जब बन रहा होता है तो क्या ‘गुल’ खिलते हैं, इस कहानी में एक सामान्य जीवन की गतिविधि के अंडरकरेंट में मचे उत्पात की उतने ही अंडरकरेंट व्यंग्य के साथ झांकी देखने को मिलती है।



हाल ही में


हाल ही में