बर्बरता के विरुद्ध

हिंदू राष्ट्रवाद की विदेशी जड़ें – 2

January 30th, 2012  |  Published in Featured, इतिहास/History, पुस्‍तकें/Books

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(स्‍कैन करने में कई अक्षर नहीं आए, इसलिए अस्‍पष्‍ट शब्‍दों के स्‍थान पर बिंदु लगा दिए गए हैं)

हिंदू राष्ट्रवाद और इतालवी फ़ासीवाद

उपरोक्त कृतियों मे से कोई भी उस समस्या से नहीं निपटती, जिसे मैं अत्यधिक महत्वपूर्ण मानती हूँ, जाफ्रे़लोट की कृतियां भी नहीं, अर्थात फ़ासीवादी सरकार के प्रतिनिधियों के साथ सीधे संबंधों का होना, जिनमे मुसोलिनी और हिंदू राष्ट्रवादी शामिल हैं। ये संपर्क प्रमाणित करते हैं फ़ासीवादकी विचारधारा और व्‍यवहार में हिंदू राष्‍ट्रवाद की रुचि अमूर्त नहीं थी, बल्कि इससे भी काफ़ी बढ़कर थी।

फ़ासीवाद और मुसोलिनी में भारतीय हिंदू राष्‍ट्रवादियों की रुचि एक आकस्मिक जिज्ञासा मात्र से पैदा नहीं हुई थी जो कुछ व्‍यक्तियों तक ही सीमित हो, बल्कि इसे उस मनोयोग की पराकाष्‍ठा का परिणाम समझना चाहिए, जिसे हिंदू राष्‍ट्रवादियों ने, विशेषकर महाराष्‍ट्र के हिंदू राष्‍ट्रवादियों ने इतालवी तानाशाही और इसके नेता पर केंद्रित किया था। उन्‍हें फ़ासीवाद में रूढ़ि‍वादी क्रांति नज़र आई। इतालवी सरकार के पहले चरण से ही यह अवधारणा मराठी अख़बारों में विस्‍तृत चर्चा का विषय रही।

1924 से 1935 तक केसरी ने इटली, फ़ासीवाद और मुसोलिनी पर लगातार संपादकीय और लेख प्रकाशित किए। जिस बात ने मराठी पत्रकारों को प्रभावित किया था, वह थी फ़ासीवाद का समाजवादी उद्भव और यह तथ्‍य कि नई सरकार एक पिछड़े देश को एक अव्‍वल दर्जे के देश में तब्‍दील करती प्रतीत हो रही थी। उस समय, भारतीय लोग यह नहीं जान पाए कि इस जनोत्तेजक वक्‍तृता (शब्‍दाडंबर) के पीछे कोई सार नहीं था।

इसके अलावा भारतीय प्रेक्षक आश्‍वस्‍त थे कि फ़ासीवाद ने एक ऐसे देश में फिर से व्‍यवस्‍था क़ायम की थी, जो पहले राजनीतिक तनावों से ग्रस्‍त था। केसरी ने अपने संपादकीयों की एक श्रृंखला में उदार सरकार से तानाशाही में तब्‍दीली को अराजकता की जगह एक सुव्‍यवस्थित स्थिति में परिवर्तन बताया। मराठी अख़बार ने मुसोलिनी द्वारा किए गए राजनीतिक सुधारों को, विशेषकर संसद सदस्‍यों के चुनाव की जगह उनके नामांकन (वही, 17 जनवरी, 1928) और खुद संसद की जगह ग्रेट … ऑफ़ फ़ासिज्‍़म अर्थात फ़ासीवाद की महान… स्‍थान दिया। मुसोलिनी का विचार जनतंत्र … और इसकी अभिव्‍यक्ति तानाशाही के सिद्धांत में हुई। इस सिद्धांत के अनुसार राष्‍ट्र के  लिए जनतांत्रिक संस्‍थाओं की अपेक्षा ‘एक व्‍यक्ति की सरकार अधिक उपयोगी और क़ाबिल होगी (वही, 17 जुलाई, 1928)। क्‍या यह सब ‘एक नेतृत्‍व …’ (‘एक चालक अनुवर्तित्‍व’) के सिद्धांत की याद नहीं दिलाता, जिसे आरएसएस ने अपनाया है?

अंत में, 13 अगस्‍त, 1929 के एक लंबे लेख ‘इटली एंड द यंग जनरेशन’ (इटली और नई पीढ़ि‍यां) में बतायाकिदेशको चलाने के लिए इटली में नई पीढ़ी ने पुरानी पीढ़ी का स्‍थान ले लिया है। इसकी परिणति ‘हर क्षेत्र में इटली के …(तेज़) आरोहण’ में हुई। फ़ासीवादी आदर्शों पर इतालवी समान के गठन का लेख ने विस्‍तार से वर्णन किया। इतालवी ….शासन के प्रमुख कारण थे : तीव्र धार्मिक भावनाएं, … व्‍यापक थीं; परिवार से घनिष्‍ठता; और परंपरागत मूल्‍यों का आदर्श यानी कोई तलाक़ नहीं, कोई एकल (अविवाहित …… को वोट का अधिकार नहीं, घर में बैठना, चूल्‍हा फूंकना ही उनका एकमात्र कर्तव्‍य। तदुपरांत लेख फ़ासीवादी युवक संगठनों, बलिल्‍ला और अवांगार्दी पर अपना ध्‍यान केंद्रित करता है।

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